Hanuman Ji stories In Hindi
बगैर हनुमान जी Hanuman Ji के रामयाण कभी पूर्ण नहीं होती तथा रामायण में राम एवं रावण युद्ध में हनुमान जी ही केवल एकमात्र ऐसे योद्धा थे जिन्हे कोई भी, किसी भी प्रकार से क्षति नहीं पहुंचा पाया था.
आज हम आपको हनुमान जी के बारे में कुछ नई बाते बताने जा रहे है जिन के बारे में शायद आपने न कभी पढ़ा होगा और न सूना. हनुमान जी के संबंध में 8 अनोखे रहस्य आपको अवश्य ही आश्चर्यचकित होने में मजबूर कर देंगे.
पहली हनुमान स्तुति :-
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Hanuman Ji Stories जब हनुमान जी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि वहां सीताजी को रखा गया था. दूसरी ओर उन्होंने विभीषण का भवन इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था. भगवान विष्णु का पावन चिह्न शंख, चक्र और गदा भी बना हुआ था. सबसे सुखद तो यह कि उनके घर के ऊपर ‘राम’ नाम अंकित था. यह देखकर हनुमानजी ने उनके भवन को नहीं जलाया.
विभीषण के शरण याचना करने पर सुग्रीव ने श्रीराम से उसे शत्रु का भाई व दुष्ट बताकर उनके प्रति आशंका प्रकट की और उसे पकड़कर दंड देने का सुझाव दिया. हनुमान जी ने उन्हें दुष्ट की बजाय शिष्ट बताकर शरणागति देने की वकालत की. इस पर श्रीरामजी ने विभीषण को शरणागति न देने के सुग्रीव के प्रस्ताव को अनुचित बताया और हनुमानजी से कहा कि आपका विभीषण को शरण देना तो ठीक है किंतु उसे शिष्ट समझना ठीक नहीं है.
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इस पर श्री हनुमानजी Hanuman Ji ने कहा कि तुम लोग विभीषण को ही देखकर अपना विचार प्रकट कर रहे हो मेरी ओर से भी तो देखो, मैं क्यों और क्या चाहता हूं….फिर कुछ देर हनुमान जी ने रुककर कहा- जो एक बार विनीत भाव से मेरी शरण की याचना करता है और कहता है- ‘मैं तेरा हूं, उसे मैं अभयदान प्रदान कर देता हूं.
यह मेरा व्रत है इसलिए विभीषण को अवश्य शरण दी जानी चाहिए.’इंद्रादि देवताओं के बाद धरती पर सर्वप्रथम विभीषण ने ही हनुमान जी की शरण लेकर उनकी स्तुति की थी. विभीषण को भी हनुमानजी की तरह चिरंजीवी होने का वरदान मिला है. वे भी आज सशरीर जीवित हैं. विभीषण ने हनुमानजी की स्तुति में एक बहुत ही अद्भुत और अचूक स्तोत्र की रचना की है. विभीषण द्वारा रचित इस स्तोत्र को ‘हनुमान वडवानल स्तोत्र कहते हैं.
हनुमान जी का जीवित होना :-
13 वीं शताब्दी में माधवाचार्य, 16 वीं शताब्दी में तुलसीदास, 17 वीं शताब्दी में राघवेंद्र स्वामी तथा 20 वीं शताब्दी में रामदास , ये सभी यह दावा करते है की इन्हे हनुमान जी के सक्षात दर्शन हुए.
हिन्दू धर्म गर्न्थो और पुराणों में यह बताया गया है की हनुमान जी Hanuman Ji इस पृथ्वी में कलयुग के अंत होने तक निवास करेंगे. हनुमान सहित परशुराम, अश्वत्थामा, विश्वामित्र, विभीषण और राजा बलि सभी सार्वजनिक रूप से इस धरती पर उस समय प्रकट होंगे जब भगवान विष्णु यहाँ धरती पर कल्कि के अवतार में जन्म लेंगे.
कलियुग में हनुमान जी, भैरव, काली और माता अम्बा को जागृत देव माना गया है, इनका ध्यान करने मात्र से ही ये तुरंत सक्रिय हो जाते है. इसलिए जितने जल्दी ये प्रसन्न होते है उतने जल्दी ही यदि इनका किसी तरह से अपमान हो जाए तो, ये क्रोधित हो जाते है.
क्यों प्रमुख देव हैं हनुमान :-
Panchmukhi Hanuman Ji
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हनुमानजी 4 कारणों से सभी देवताओं में श्रेष्ठ हैं. पहला कारण यह कि सभी देवताओं के पास अपनी अपनी शक्तियां हैं. जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, महेश के पास पार्वती और ब्रह्मा के पास सरस्वती, हनुमानजी के पास खुद की शक्ति है. वे खुद की शक्ति से संचालित होते हैं. हनुमान जी से जुडी इस सच्चाई को जान आश्चर्य में पड जाएंगे आप, बजरंग बलि से जुडी अनोखी कथा !
दूसरा कारण यह कि वे इतने शक्तिशाली होने के बावजूद ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित हैं, तीसरा यह कि वे अपने भक्तों की सहायता तुरंत ही करते हैं और चौथा यह कि वे आज भी सशरीर हैं. इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी. महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती.
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हनुमान जी के गुरु :-
हनुमान जी Hanuman Ji के गुरु थे मातंग ऋषि. वैसे तो हनुमान जी ने कई गुरुओ से शिक्षा ग्रहण करी थी जैसे सूर्य, नारद मुनि परन्तु इनके आल्वा ऋषि मातंग से भी हनुमान ने शिक्षा ग्रहण की थी. ऋषि मातंग सबरी के भी गुरु थे और ऐसा माना जाता है की हनुमान जी का जन्म भी ऋषि मातंग के आश्रम में हुआ था. मातंग ऋषि के आश्रम में माता दुर्गा की कृपा से जिस कन्या का जन्म हुआ था उसका नाम देवी मातंगी है. देवी मातंगी सभी 10 महाविद्याओ में से एक है.
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हनुमान जी और श्री राम का युद्ध :-
हनुमान जी और श्री राम का एक बार युद्ध भी हुआ था. गुरु विश्वामित्र ने श्री राम को राजा ययाति का वध करने का आदेश दिया. राजा ययाति अपने प्राण की रक्षा के लिए हनुमान जी की माता अंजना के शरण में गया तथा उनके द्वारा हनुमान जी से यह प्रण करवाया की वे राजा ययाति की श्री राम से रक्षा करेंगे. Jai Hanuman Ji Ki
माता के आदेश पर हनुमान जी Hanuman Ji प्रभु राम से राजा ययाति की रक्षा करने गए. हनुमान जी ने किसी अस्त्र-शस्त्र से लड़ने के बजाए प्रभु राम के नाम का जप करना शुरू कर दिया, राम ने हनुमान जी पर जितने बाण चलाए वे सभी व्यर्थ गए. अंत में विश्वामित्र सहित सभी हनुमान जी की राम के प्रति श्रद्धा भक्ति देख कर आश्चर्यचकित रह गए और विश्वामित्र ने राम को युद्ध रोकने का आदेश देकर राजा ययाति को जीवन दान दिया.
कुंती पुत्र भीम हनुमान जी के भाई थे :-
श्री राम का जन्म 5111 ईसवी पूर्व हुआ था, हनुमान जी का जन्म श्री राम के जन्म से कुछ वर्ष पूर्व हुआ था. इसी तरह श्री कृष्ण का जन्म 3112 इससे पूर्व हुआ था. इस मान से भीम का जन्म श्री कृष्ण के जन्म से कुछ वर्ष पूर्व हुआ था . हनुमान जी और भीम के जन्म में लगभग 2002 वर्षो का अंतर आता है.
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तब आप सोच रहे होंगे की वे दोनों आखिर भाई कैसे हुए. दरअसल हनुमान जी पवन पुत्र है, और कुंती को भीम भी पवन देव के आशीर्वाद से प्राप्त हुए थे. इस मान से दोनों के पिता एक ही है. इस तरह भीम को भी पवन पुत्र कहा जाता है व दोनों ही अत्यधिक शक्तिशाली थे. कहा जाता है की भीम के पास हजार हाथियों का बल था. महाभारत काल में उनके समान शक्तिशाली योद्धा उनके बाद सिर्फ उनका पुत्र था.
माता जगदम्बा के सेवक हनुमान जी :-
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हनुमान जी भगवान श्री राम के समान ही माँ जगदम्बा के भी बहुत बड़े भक्त थे. हनुमान जी Hanuman Ji सदैव माँ जगदम्बा के आगे-आगे उनकी सेवा के लिए चलते है तथा माँ जगदम्बा के पीछे भैरव उनकी सेवा में लिए उनके पीछे रहते है. हर मंदिर जहा माता जगदम्बा की प्रतिमा विध्यमान होगी वहां बजरंगबली की प्रतिमा भी अवश्य होती है.कहि-कहि पर हनुमान जी की गाथा माता वैष्णो देवी से भी जोड़ी जाती है .
हनुमान ने इस तरह दिया भी दिया श्री राम का साथ :-
रावण ने माँ जगदम्बा को प्रसन्न करने व राम के साथ युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया, जिसके लिए उसने उस यज्ञ में बहुत ही उच्च कोटि के ब्राह्मणो को बुलवाया. जब यह यज्ञ चल रहा था उस समय हनुमान जी Hanuman Ji अपना रूप बदल कर लंका उस यज्ञ में पहुंचे और उस यज्ञ को सम्पन कर रहे ब्राह्मणो की खूब सेवा करी.
जब हनुमान से प्रसन्न होकर ब्राह्मणो ने उनसे वरदान मांगने को कहा था तो उन्होंने मन्त्र में एक शब्द बदलवा दिया. ब्राह्मणो दवारा पढ़े गए गलत मंत्रो के कारण देवी रुष्ट हुई और राम-रावण युद्ध में रावण को पराजय का सामना करना पड़ा.