इंदौर में स्थित जुनि शनि मंदिर में शनिदेव सोलह श्रृंगार के साथ साक्षात दर्शन देते है जबकि अन्य मंदिरो में शनि की बिना श्रृंगार वाली काली प्रतिमा या शीला के दर्शन होते है. शनि देव का यह मंदिर अति प्रचीन है तथा अपने चमत्कारों के कारण प्रसिद्ध है. शनि देव का यह मंदिर अपने परम्पराओ के कारण सभी शनि मंदिरो से अलग है यहा शनि देव पर दूध और पानी से अभिषेक होता है.
.जानिए ..shani dev ki puja kaise kare
अधिकतर लोग शनि देव को के नाम से भय खाते है उन्हें कुरता का प्रतीक मानते है परन्तु शनि देव के इस मंदिर में भक्त शनि देव के सोलह श्रृंगार से सजे मनमोहक रूप को देख मन्त्रमुग्ध हो जाते है उनके मन से शनिदेव के कुर रूप का भय गायब हो जाता है. लोग बताते की इस मंदिर के अंदर घुसते ही उन्हें चमत्कारी शक्तियों का अहसास होने लगता है. इस मंदिर में पहुंच शनिदेव के दर्शन मात्र से ही भक्तो की हर प्रकार की पीड़ा दूर हो जाती है तथा उसके हर बिगड़े काम बनने लगते है इसी के साथ ही शनि के प्रकोप से भी छुटकारा मिलता है.मंदिर में शनिदेव का सिंदूरी श्रृंगार किया जाता है तथा सिंदूर का चोला पहनकर चाँदी के वर्क लगाये जाते है व शाही पोशाक पहनकर उन्हें सजाया जाता है. शनिदेव के इस अद्भुत रूप का दर्शन करने देश विदेश से भक्त आते है तथा हर दिन मंदिर में भारी मात्रा में भीड़ होती है. शनि देव के मंदिर में कई प्रसिद्ध संगीतकार, गायक और वादक अपनी कला प्रस्तुत कर चुके है.
जानिए…. how to do shani puja at home
ऐसा माना जाता है की यह मंदिर स्वयं निर्मित है इस मंदिर का निर्माण किसी भी व्यक्ति ने नही किया है बल्कि शनि देव यहा खुद आकर पधारे थे. इस मंदिर के निर्मित होने को लेकर बहुत ही रोचक कथा है, कहा जाता है की मंदिर वाले स्थान पर बहुत वर्ष पहले एक अँधा धोबी रोज आकर कपड़े धोया करता था. एक दिन उस धोबी के सपने में शनिदेव प्रकट हुए तथा बोले की जिस पत्थर में वह कपड़े धोता है वहा उनका वास है. धोबी शनिदेव से बोला की वह तो अँधा है उसे कैसे पता चलेगा. जब अगली सुबह वह जागा तो उसके आखो की रौशनी वापस आ चुकी थी, सपने वाली बात याद करते हुए वह शनि देव के बताये जगह पर गया तथा वहा खुदाई के बाद उसे शनि देव की प्रतिमा प्राप्त हुई. उसने वही भगवान की प्राण प्रतिष्ठा करवाई, परन्तु फिर एक चमत्कार घटित हुआ जिस स्थान पर मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई थी शनि जयंती के दिन वह मूर्ति अपने स्थान से हटकर मंदिर में ही एक अन्य स्थान पर स्थापित हो गई तब से उसी स्थान पर शनि देव की पूजा अर्चना होने लगी.
और पढ़े…..shani dosh nivaran